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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2639
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।

अथवा
सिद्ध व नाथ तथा जैन साहित्य का प्रवृत्तिगत विश्लेषण कीजिए।

उत्तर-

स्थूल रूप से आदिकालीन साहित्य का विभाजन निम्नलखित प्रकार से किया जा सकता है
(1) धार्मिक साहित्य - (क) जैन साहित्य, (ख) सिद्ध या बौद्ध साहित्य, (ग) नाथ साहित्य
(2) लौकिक साहित्य
(3) प्रशस्तिमूलक चरितनाथ

धार्मिक साहित्य

(क) जैन साहित्य - जिस प्रकार देश के पूर्वी हिस्से में बौद्ध सहजयानी सिद्ध हिन्दी भाषा के माध्यम से अपने मतवाद का प्रचार कर रहे थे। उसी प्रकार देश के पश्चिमी क्षेत्र में जैन मतावलम्बी धर्माचार्य एवं आचार्य हिन्दी कविता के माध्यम से अपने मतवाद का प्रचार-प्रसार कर रहे थे। इस प्रकार जैन मुनियों ने जो रचनाएँ की उसका आदिकालीन साहित्य में प्रमुख स्थान है। इसमें धार्मिता का पुट है 'जैन कवियों द्वारा लिखा गया साहित्य तीन प्रकार का है-
(1) कथा प्रबन्धात्मक काव्य,
(2) उपदेशात्मक काव्य और
(3) रहस्यवादी काव्य।

जैन कथा प्रबन्ध काव्यों में स्वयंभू कृत पउमचरिउ' और 'रिट्ठणेमि चरिउ, 'पुण्पदन्त कृत' 'महापुराण', 'जसंहर चरिउ', 'जयकुमार चरिउ' 'कनकामरमुनि कृत', 'करकण्डचरिउ' और महिफद्र सूरीकृत सनत कुमार चरित्र उल्लेखनीय हैं।

जैन आचार्य कवियों द्वारा उपदेशात्मक काव्य दो रूपों में लिखे गये -
(क) सम्पूर्ण ग्रन्थों के रूप में और (ख) स्फुट छन्दों के रूप में।

ऐसी उपदेशपरक रचनाओं में देवसेन कृत सावयधम्मदोहा, 'जिन दत्त सूरिकृत', 'उपदेश रसायनरास' और महेश्वर सूरिकृत 'संयम मंजरी प्रमुख हैं। इनमें उपदेश परक तत्वों की प्रधानता है, किन्तु काव्यत्व की दृष्टि से सामान्य और नीरस है।

जैन धर्माचार्य कवियों ने रहस्यवादी काव्य भी लिखे हैं। इन धर्माचार्य कवियों ने योगियों एवं सिद्धों की तरह बाह्याचार का विरोध भी किया। चिन्तशुद्धि के लिए अन्तस्साधना पर जोर दिया है। शरीर को ही सम्पूर्ण साधनाओं का केन्द्र माना है और समरस भाव को महत्व दिया है। ऐसे कवियों में योगीन्दु, मुनि, रामसिंह, आनन्द तिलक, लक्ष्मीचन्द्र आदि का नाम उल्लेखनीय है। जैन कवि रामसिंह मुनि ने स्पष्टतः लिखा है कि- "लोग तभी तक कुतीर्थो में भ्रमण करते हैं और तभी तक धूर्तता करते हैं, जब तक वे गुरु की कृपा से देह के देव को नहीं जान लेते"-
"ताम कुतित्थइं परिभमई धुत्तिमताम करंति।
गुरु हु पसाएँ जामण विदेहहं देउ मुणंति।।'

विशेषताएँ - आदिकालीन जैन साहित्य की सामान्य विशेषताएँ निम्नवत् हैं -

(1) यह साहित्यिक भी है और लोकभाषा मूलक भी है। साथ ही तत्कालीन बोल-चाल की भाषा के रूपों का प्रामाणिक कोश है।

(2) जैन साहित्य विविध विषयक है। सामाजिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, साहित्यिक काव्यों के साथ- साथ लोक आख्यानक काव्यों की रचना भी इन कवियों ने की है।

(3) एक से एक सुन्दर रचनाएँ इस युग में जैन कवियों द्वारा लिखी गयी है। यथा- 'भरतेश्वर 'बाहुबली रास', 'नेमिनाथ फागु', 'पंचपाण्डव' चरितरास', 'विराट पर्व', 'ज्ञान- पंचमी चौपाई, आदि।

(4) आदिकालीन जैन साहित्य अनेक परम्पराओं का उद्घाटन करता है।

(5) जैन साहित्य में हिन्दी के वे आदिकालीन काव्य रूप मिलते हैं, जो आगे चलकर पर्याप्त विकसित और प्रचलित हुए। यथा-रास, फागु, छप्पय, प्रबन्ध, गाथा, गीत, दोहा, स्तुति आदि काव्य रूपों में सुन्दर काव्य लिखे गये हैं।

(6) लोकभाषागत एवं लोकचेतनागत प्रवृत्तियाँ जैन साहित्य में काफी मिलती है।

(7) जैन अपभ्रंश साहित्य में हिन्दी मात्रा साहित्य के आरम्भिक रूप प्राप्त होते हैं।

(8) आदिकालीन जैन कवियों ने वही लिखा है, जो आँखों से देखा है। काव्य रूढ़ियों का इन्होंने बहुलता से निर्वाह किया है।

(9) शान्त या निर्वेद को जैन कवियों ने 'रसराज' के रूप में अपनाया है।

(10) जैन कवियों की मूल संवेदना 'बसुधैव कुटुम्बकम्' की है। इसी कारण इन कवियों की रचनाओं में मानवीयता का भाव सर्वाधिक पाया जाता है।

(ख) सिद्ध साहित्य - ऐतिहासिक दृष्टि से सिद्ध कवियों की परम्परा बौद्ध धर्म के विकृत रूप के अन्तर्गत मानी जाती है। जब बौद्ध धर्म अपनी अन्तिम अवस्था में वज्रयान शाखा के रूप में परिवर्तित होकर तान्त्रक एवं वामाचारों में जकड़ गया था। सिद्ध कवियों की परम्परा सातवीं शताब्दी से लेकर तेरहवीं शताब्दी तक मानी जाती है। इसी परम्परा में लुइया, विरूपा, सरहपा, गोरक्षया आदि 84 सिद्धों के नाम आते हैं। जिसका सम्बन्ध समाज के निम्न वर्ग मछुए, चमार, धोबी, डोम, कहार, दर्जी, लकड़हारा आदि से था। जनता में अपना प्रभाव जमाने के लिए ये सन्ध्या भाषा में रहस्यमयी भाषा प्रचलित लोक शब्दावली और अटपटी बानियों में छन्द विधान करते थे। नाद, बिन्दु, रवि, शशि, पवन षटचक्र, सहज, पंचाविडाल, पंचमकार, तरुवर आदि इनके सांकेतिक या प्रतीकात्मक शब्द थे। सिद्धों में गुहा साधना पद्धति प्रचलित थी। गुप्त रूप से मुक्त यौनाचरण, योनिपूजा, चक्र सँवर आदि देवताओं का अनुष्ठान किया जाता था। युग- नद्ध के रूप में देवी-देवता स्वरूप स्त्री-पुरुषों की अश्लील मिथुन मूर्तियों की पूजा का विधान धर्म सम्मत माना गया है। सिद्धि में शक्ति के उपभोग को आवश्यक मानते हुए सिद्धों ने स्त्री (शक्ति, योगिनी, महामुद्रा ) सेवन को साधना का विशेष अंग बताया है। सिद्धों की रचनाएँ, 'दोहा कोश' और चर्यापद नामक दो काव्य रूपों में उपलब्ध होती है। 'दोहाकोश' दोहों से युक्त 'चतुष्पदियों की कड़क शैली में मिलते हैं। 'चर्यापद' बौद्ध तांत्रिकचर्या के समय गाये जाने वाले पद है।
सिद्धों की रचनाओं का संग्रह सर्वप्रथम हरिप्रसाद शास्त्री ने 'बौद्धगान ओ दोहा' नाम से प्रकाशित कराया। भाषा और आध्यात्मिकता की दृष्टि से सिद्ध साहित्य ने हिन्दी के निर्गुण सन्तों को काफी प्रभावित किया है।
सिद्धों के साहित्य को तीन भागों में बांटा जा सकता है -
(क) नीति तथा आचरणमय
(ग) साधना सम्बन्धी अर्थात् रहस्यवादी।
(ख) उपदेशात्मक

डॉ. रामकुमार वर्मा के शब्दों में, "सिद्धि साहित्य की रचना में हमें रहस्यवाद का बीज मिलता है।"

महत्व - सिद्ध साहित्य में सदियों से आने वाली धार्मिक और सांस्कृतिक विचारधारा का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। भाषा की दृष्टि से भी सिद्ध साहित्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस सम्बन्ध में डॉ. राम कुमार वर्मा का कथन अवलोकनीय है "सिद्ध साहित्य का महत्व इस बात में बहुत अधिक है कि उससे हमारे साहित्य के आदि रूप की सामग्री प्रामाणिक ढंग से प्राप्त होती है। यह सिद्ध साहित्य शताब्दियों से आने वाली धार्मिक और सांस्कृतिक विचारधारा का स्पष्ट उल्लेख है। भाषा विज्ञान की दृष्टि से भी यह साहित्य महत्वपूर्ण है।"

(ग) नाथ साहित्य - सिद्ध साधना के कर्मकाण्ड की वीभत्सा व विकृति को देखकर उसे संयमित तथा आचारनिष्ठ बनाने के लिए नाथ पंथ का उद्भव एवं विकास हुआ। इसे यूँ कहें कि वज्रयान की सहज साधना नाथ पंथ या सम्प्रदाय के रूप में पल्लवित पुष्पित हुई। जीवन को कर्मकाण्ड के मकड़जाल से मुक्तकर सहज रूप की ओर ले जाने का श्रेय नाथ पंथियों को ही जाता है। इस प्रकार नाथ पंथ को सिद्ध सम्प्रदाय का विकसित और शक्तिशाली रूप कहा जा सकता है। सिद्ध पंथियों की विचारधारा को लेकर नाथ पंथियों ने उसमें नवीन विचारों की प्राण प्रतिष्ठा की। नाथ सम्प्रदाय को सिद्ध सम्प्रदाय और संतों के बीच की कड़ी के रूप में माना जा सकता है।

नाथ पंथ में नौ नाथों की गणना की जाती है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण गोरखनाथ है। गोरखनाथ ही इस पंथ के प्रवर्तक माने जाते हैं। इन्होंने हठयोग क्रिया द्वारा कुण्डलिनी शक्ति को जाग्रत करके सहस्तार चक्र में स्थित ब्रह्मदर्शन की साधना का प्रचार-प्रसार किया। इड़ा, इंगला, पिंगला, सुरति निरति, नाद, बिन्दु, शून्य, पवन, निरंजन, सूर्य, चन्द्र आदि इनके पारिभाषिक शब्द हैं। इन्होंने जप-तप, वेद तथा तीर्थाटन के स्थान पर आत्म-निग्रह पर बल दिया। इसके अतिरिक्त इनके ग्रन्थों में उलट बासी और रहस्यात्मकताओं के साथ ही रूढ़ि एवं पाखण्ड-खण्डन भी दिखाई पड़ता है। नाथ पंथी ग्रन्थों में गोरखनाथ के 'गोरख्यबोध', 'गोरखबोध', 'गोरख संवाद', गोरखदत्त गोष्ठी', 'निरंजन पुराण', 'गोरख सागर' आदि प्रमुख हैं। डॉ. वाड़थ्वाल ने इनकी 'सबदी' को सर्वाधिक प्रमाणित कृति माना है। इनके अतिरिक्त चौरंगीनाथ, गोपचन्द, चुणकरणनाथ, थरथरी और जालंघ्री पाद की कृतियों का उल्लेख मिलता है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार, "इस काल की कोई भी रचना अवज्ञा और उपेक्षा का पात्र नहीं हो सकती। साहित्य की दृष्टि से, भाषा की दृष्टि से या सामाजिक गति की दृष्टि से, उसमें किसी न किसी- महत्वपूर्ण तथ्य के मिल जाने की संभावना होती है।"

सारतः यह कहा जा सकता है कि भाषा वर्ण्य विषय, उपमा, रूपक, उलटबाँसी, अन्योक्ति, रहस्योक्ति तथा प्रतीक योजना की दृष्टि से कबीर आदि सन्तों की पूर्व पीठिका का यही नाथ साहित्य रहा है और इसे ही आगामी हिन्दी साहित्य का पथ-प्रदर्शक माना जाता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
  3. प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  4. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  5. प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
  6. प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  7. प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
  10. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  13. प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
  14. प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
  18. प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
  19. प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
  20. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  21. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  24. प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  25. प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
  26. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  28. प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  29. प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
  30. प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  33. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  35. प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
  36. प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  37. प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
  38. प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
  40. प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
  41. प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  44. प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
  45. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
  47. प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
  48. प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  49. अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
  50. प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  51. प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  53. प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
  54. प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
  55. प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
  56. अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
  57. प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
  58. प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
  59. अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
  60. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  63. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  65. अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
  66. प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  68. प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
  69. प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
  71. प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
  72. अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
  73. प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
  76. प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  77. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
  81. प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
  82. अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
  83. प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  84. प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
  86. प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  89. अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  92. प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
  93. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  94. अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
  95. प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
  96. प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
  97. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
  99. अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
  100. प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  102. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
  104. प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
  105. अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
  106. प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
  107. प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
  109. प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
  110. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  111. अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  112. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
  113. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  114. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
  116. अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
  117. प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
  118. प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
  119. अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
  120. प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
  121. प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  122. अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
  123. प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
  124. प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
  125. प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
  126. प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
  128. अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  129. प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  130. प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
  131. प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
  132. प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
  133. प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
  134. अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
  135. प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
  136. प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
  137. प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
  138. अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  140. प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  141. अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
  142. प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
  143. प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  144. प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
  145. अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
  146. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  147. प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
  148. प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
  149. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  150. प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
  151. अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
  152. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  153. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
  154. अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
  155. प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  156. प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
  157. प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।

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